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लेखपाल का रिश्वत लेते वीडियो हुआ सोशल मीडिया पर वायरल

लेखपाल का रिश्वत लेते वीडियो हुआ सोशल मीडिया पर वायरल

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी में अव्यवस्थाओं का बोलबाला, पैसों कि खातिर जान से खेलती स्टाफ नर्स।परिवारजनों ने स्टाफ नर्स पर लगाया पैसे मांगने का आरोप।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी में अव्यवस्थाओं का बोलबाला, पैसों कि खातिर जान से खेलती स्टाफ नर्स।परिवारजनों ने स्टाफ नर्स पर लगाया पैसे मांगने का आरोप।

ललितपुर ब्यूरो /(सुरेंद्र कुमार) जिला ललितपुर से करीब 35 किलो मीटर कि दूरी पर महरौनी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी में मरीजों के साथ पैसों के लिए उनकी जान से भी खेलना कोई बड़ी बात नहीं हैं, यहां का स्टाफ चंद पैसों के लिए आमजन गरीबों कि जान से आंख मिचौली करने से भी परहेज़ नहीं करते। वहीं हम आपको बता दें कि महरौनी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी में आए दिन गरीबों से पैसे मांगने के आरोप लगने एक आम बात है। करीब एक माह पहले जिस स्टाफ नर्स अनीता सेन पर पैसा मांगने के आरोप लगाए गए हैं। उसी स्टाफ नर्स अनीता सेन उस समय के चिकित्सा अधीक्षक पर शोषण करने आरोप लगाए थे और विषाक्त पदार्थ का सेवन कर लिया था, जिसके बाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र महरौनी में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए कहा था कि चिकित्सा अधीक्षक सिद्धार्थ जैन आए दिन हम लोगों का शोषण कर रहे हैं जिस कारण स्टाफ नर्स ने विषाक्त पदार्थ का सेवन किया है। सिद्धार्थ जैन के अनुसार – डॉ सिद्धार्थ जैन ने इस मामले में कहा था कि उक्त स्टाफ नर्स प्रसूता वार्ड में गरीबों से पैसा लूटने का कार्य करती है जिस कारण स्टाफ नर्स अनीता कि जगह बदल दी गई थी जिस कारण यह हाइवोल्टेज ड्रामा किया जा रहा है। इन लोगों का केवल एक ही मतलब है कि यह आमजन और गरीबों को किसी भी प्रकार से अपनी लूट का साधन बनाती रहें और कोई इनके विरोध में आवाज ना उठाए इसलिए यह रणनीति अपना कर हमें यह से हटाने के लिए यह खेल रचा गया था। प्रसूता कि सास वती के अनुसार– महरौनी निवासी वती परिहार ने आरोप लगाते हुए बताया कि जब वह अपनी बहु को सामुदायिक स्वास्थ्य महरौनी केंद्र लेकर पहुंची तब स्टाफ नर्स ने उन्हें अंदर तो लिया लेकिन उसके ऐवज में पैसे मांगने कि बात कहने लगी, जिस पर प्रसूता कि सास ने कहा कि मेम हमारे पास पैसे नहीं हैं और हम ग़रीब आदमी हैं तब स्टाफ नर्स अनीता सेन और साथ के एनी स्टाफ ने कहा कि यदि आप पैसे देंगे तो यहां पर प्रसूता को भर्ती किया जायेगा और यदि नहीं पैसे दोगी तो हम उनको रिफर कर देंगे, जिसके बाद प्रसूता कि मां ने अपने लड़के को पैसे लाने कि बोला और स्टाफ नर्स को पैसे दिए, जिसके बाद प्रसूता कि डिलेवरी कराई गई, और प्रसूता ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म देने के बाद निछार के रुप में भी मांगे पैसे – वहीं प्रसूता कि सास ने बताया कि जब बच्चे ने जन्म लिया तब हम अपनी बहु को ले जाकर अंदर पलंग पर लिटाने ले गए और उसके बाद जब बच्चे को उठाने के लिए पहुंचे तब कर्मचारियों ने निछार के रुप में भी पैसे मांगने लगे और उस समय समस्त स्टाफ ने करीब 5 हजार के लगभग रुपया लिए। बच्चे के पिता के अनुसार – बच्चे के पिता ने आरोप लगाया कि बच्चे के होने समय करीब चार से पांच हजार रूपए लिए गए जिस कारण बच्चे कि कोई देख रेख नहीं कि गई, जबकि मम्मी ने कहा भी है की बच्चा मुंह नहीं बोल रहा तब नर्स ने थप्पड़ मारे तब बच्चा रोने लगा और उसके बाद फिर पैसों कि मांग करने लगे जिसमें बाद में भी कहा गया कि बच्चा मुंह नहीं बोल रहा है तब अनीता सेन ने कहा कि बच्चा लुंजट गया है जिससे नहीं बोल रहा वह बाद में बोलने लगेगा और इसी बीच बच्चे कि जान चली गई केवल पैसों के कारण। नर्स पर आरोप प्रत्यारोप का दौर हमेशा चलता रहा है मगर नर्स पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं कि गई आखिर क्यों? जबकि सिद्धार्थ जैन ने भी यही कहा था कि उक्त स्टाफ नर्स मरीजों से इलाज के नाम पर पैसा लेने का कार्य करती है जिस कारण उसकी ड्यूटी अन्य जगह लगाई गई थी जिस कारण यह हाइ बोलटेज ड्रामा किया गया है जिससे यह अपने मनमर्जी के अनुसार कार्य करती रहे।

भीमा कोरेगांव का युद्ध : जब 500 महारों ने 28,000 पेशवा सैनिकों से लिया जातीय अपमान का बदला !

भीमा कोरेगांव का युद्ध : जब 500 महारों ने 28,000 पेशवा सैनिकों से लिया जातीय अपमान का बदला !

युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार पेशवा की सेना को देख कर ही दुश्मन घबरा जाए। उस दिन अंग्रेज सेना के अफसर भी घबरा गये थे... कुछ सौ सैनिकों के सामने हजारों की फौज देखकर उन्हें यकीन हो चला था कि उनकी हार निश्चित है। डॉ आंबेडकर ने भीमा कोरेगांव स्मारक की यात्रा की थी। (Art by Patron of Ambedkar) तारीख 1 जनवरी 1818, जगह भीमा कोरेगांव, पुणे। एक तरफ थी पेशवा बाजी राव II की विशाल सेना और दूसरी तरफ थे ब्रिटिश आर्मी के मुट्ठी भर जवान। पेशवा की सेना में 28000 से ज्यादा सैनिक थे। पैदल, घुड़सवार और तीर अंदाज सैनिकों की टुकड़ियां थी। युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार पेशवा की सेना को देख कर ही दुश्मन घबरा जाए। उस दिन अंग्रेज सेना के अफसर भी घबरा गये थे… कुछ सौ सैनिकों के सामने हजारों की फौज देखकर उन्हें यकीन हो चला था कि उनकी हार निश्चित है। 500 महारों ने 28,000 सैनिकों को धूल चटा दी अंग्रेज सेना में कुल 834 सैनिक थे, इनमें से 500 सैनिक महार जाति के थे। इस महार रेजिमेंट के वीरों ने पेशवा की सेना से टक्कर का ऐलान कर दिया। उस दिन भीमा नदी के तट उस ऐतिहासिक लड़ाई के गवाह बने जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। भीमा कोरेगांव में जबरदस्त युद्ध हुआ लेकिन महार सैनिकों के सामने पेशवा की सेना ज्यादा देर टिक ना सकी। महार किसी भूखे शेर की तरह पेशवा की सेना पर टूट पड़े… एक-एक महार सैनिक सौ-सौ पेशवा सैनिकों पर भारी पड़ रहा था। इन मुट्ठी भर सैनिकों ने पेशवा की सेना के छक्के छुड़ा दिये। दिनभर लड़ाई चली और पेशवा की सेना का मनोबल टूट गया। रात होते-होते पेशवा ने घुटने टेक दिए। 1 जनवरी 1818 का वो दिन इतिहास की सबसे साहसिक लड़ाई के नाम से जाना जाता है। एक ऐसी लड़ाई जिसमें मुट्ठी भर महार सैनिकों ने हजारों की सेना को धूल चटा दी थी। उस दिन के बाद से महाराष्ट्र के पुणे जिले के भीमा कोरेगांव गांव को दुनिया के नक्शे पर खास पहचान मिली। अंग्रेजों ने भीमा कोरेगांव में विक्टरी पिलर बनवाया There is a “victory pillar” in Koregaon commemorating the battle. (Photo – Wikipedia) अंग्रेजों ने महार सैनिकों के अदम्य साहस को सम्मान देने के लिए भीमा कोरेगांव में एक युद्ध स्मारक बनवाया। इस विक्टरी पिलर पर महार सैनिकों के नाम लिखे गए। ये लड़ाई इतिहास में अमर हो गई। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि महार सैनिकों ने पेशवा के खिलाफ लड़ने के लिए इतनी ताकत कहां से आई ? ऐसा क्या हुआ था जो अपनी जान की परवाह किये बिना महार रेजिमेंट टूट पड़ी थी। इसका जवाब हम आपको देते हैं। पेशवा राज में जातिवाद चरम पर था 19वीं शताब्दी में पेशवा राज भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास का सबसे क्रूरतम शासनकाल था। मराठों के साथ छल करके ब्राह्मण पेशवा जब सत्ता की कुर्सी पर आए तो उन्होंने शूद्रों को नरक जैसी यातनाएं देना शुरू कर दिया। ब्रह्माण पेशवाओं ने मनुस्मृति जैसी घटिया किताब को सख्ती से लागू किया। पेशवा राज में शूद्रों को थूकने के लिए गले में हांडी टांगना ज़रूरी था। साथ ही शूद्रों को कमर पर झाड़ू बांधना ज़रूरी था जिससे उनके पैरों के निशान मिटते रहें। शूद्र केवल दोपहर के समय ही घर से बाहर निकल सकते थे क्योंकि उस समय शरीर की परछाई सबसे छोटी होती है। परछाई कहीं ब्राह्मणों के शरीर पर ना पड़ जाए इसलिये उनके लिए यह समय निर्धारित किया गया था। शूद्रों को पैरों में घुंघरू या घंटी बांधनी ज़रूरी थी ताकि उसकी आवाज़ सुनकर ब्राह्मण दूर से ही अलर्ट हो जाएं और अपवित्र होने से बच जाएं। अंग्रेजों ने महार रेजिमेंट बनाई ऐसे समय में जब पेशवाओं ने दलितों पर अत्यंत अमानवीय अत्याचार किये, उनका हर तरह से शोषण किया, तब उन्हें ब्रिटिश सेना में शामिल होने का मौका मिला। अंग्रेज़ चालाक थे…. क्योंकि ब्रिटिश सेना में शामिल सवर्ण सैनिक, शूद्रों से कोई संबंध नहीं रखते थे, इसलिये अलग से महार रेजिमेंट बनाई गई। महारों के दिल में पेशवा साम्राज्य के अत्याचार के खिलाफ ज़बरदस्त गुस्सा था, इसलिये जब 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव में पेशवा सेना के साथ उनका सामना हुआ तो वो उन पर शेरों की तरह टूट पड़े। सिर्फ 500 महार सैनिकों ने बाजीराव द्वितीय के 28 हज़ार सैनिकों को धूल चटा दी। महारों ने पेशवा से लिया अपमान का बदला महारों में अंग्रेजी सिपाही होने से ज़्यादा जातीय भेदभाव और अपमान का बदला लेने की ललक थी। इस तरह इस ऐतिहासिक लड़ाई में महारों ने अपने अपमान का बदला लिया। 1 जनवरी 1927 को डॉ अंबेडकर भीमा कोरेगांव गये थे। बाबा साहब की इस पहल से देश के लाखों-करोड़ों दलितों को प्रेरणा मिली। जो दलित पहले खुद को कमजोर और हीन समझते थे, अब उन्हें ये पता चला कि इतिहास में उनके लोगों ने अदम्य साहस दिखाया है। ये एक तरह से गर्व करने वाली बात थी। महारों के गुस्से की जीत थी ‘भीमा कोरेगांव’ की लड़ाई धीरे-धीरे दलित हर साल एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में जुटने लगे। आज हर साल लाखों लोग भीमा कोरेगांव में आते हैं। कुछ ब्रह्माणवादी इस जश्न को अंग्रेजों की जीत का जश्न बताकर दुष्प्रचार करते हैं। वो पूछते हैं कि आज़ाद भारत में अंग्रेज़ों की जीत का जश्न क्यों मनाया जा रहा ? इस सवाल के जरिये मनुवादी मीडिया और ब्राह्मणवादी मानसिकता के लोग भीमा कोरेगांव की ऐतिहासिक लड़ाई को अंग्रेज़ों की लड़ाई साबित करने की साज़िश कर रहे हैं। क्योंकि ‘भीमा कोरेगांव’ अंग्रेज़ों की नहीं, बल्कि महारों के गुस्से की जीत थी। वीडियो देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

बिजली संकट: राज्यों में बिजली कटौती बढ़ी, कोयला ढुलाई के लिए रेलवे ने 42 यात्री ट्रेनों को रद्द किया

बिजली संकट: राज्यों में बिजली कटौती बढ़ी, कोयला ढुलाई के लिए रेलवे ने 42 यात्री ट्रेनों को रद्द किया

देश में बिजली संकट के बीच कोयला सप्लाई के लिए रेलवे ने कई रेलगाड़ियों को रद्द कर दिया है. नई दिल्ली: देश के राज्यों में बिजली संकट है. दिल्ली जैसे राज्यों में भी बहुत अधिक कोयला नहीं बचा है. राज्यों में बिजली कटौती बढ़ गई है. इस बीच हालात को देखते हुए कोयला की ढुलाई बढ़ाने के लिए रेलवे ने अब तक 42 यात्री रेलगाड़ियों को रद्द कर दिया है. और कोयला ढुलाई बढ़ा दी है. इसके चलते छत्तीसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे कोयला उत्पादक राज्यों से आने-जाने वाले लोगों को असुविधा हो रही है. कोयला उत्पादक क्षेत्रों वाले दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (SECR) डिवीजन ने 34 यात्री ट्रेनों को रद्द कर दिया है. दूसरी ओर, उत्तर रेलवे (NR) ने आठ रेलगाड़ियों को रद्द कर दिया है, जो उत्तर भारत में कई बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति करता है केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (CEA) की दैनिक कोयला भंडार रिपोर्ट में कहा गया है कि 165 ताप बिजली स्टेशनों में से 56 में 10 फीसदी या उससे कम कोयला बचा है. कम से कम 26 के पास पांच फीसदी से कम स्टॉक बचा है. भारत की 70 प्रतिशत बिजली की मांग कोयले से पूरी होती है. आधिकारिक सूचना के मुताबिक एसईसीआर के तहत आने वाली यात्री सेवा बिलासपुर-भोपाल ट्रेन को 28 मार्च को निलंबित कर दिया गया था. अब तीन मई तक इसी स्थिति में रहेगी. महाराष्ट्र के गोंदिया और ओडिशा के झारसुगुडा के बीच मेमू ट्रेन 24 अप्रैल से 23 मई तक रद्द कर दी गई है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में डोंगरगढ़-रायपुर मेमू को 11 अप्रैल से 24 मई तक रद्द कर दिया गया है. दक्षिण मध्य रेलवे ने जहां 22 मेल या एक्सप्रेस ट्रेनों और 12 पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर दिया है, वहीं उत्तर रेलवे ने चार मेल या एक्सप्रेस ट्रेनों और इतनी ही पैसेंजर सेवाओं को रद्द कर दिया है. आंकड़ों के मुताबिक इन रेलगाड़ियों के रद्द होने के बाद रेलवे ने कोयले की औसत दैनिक लदान 400 से अधिक कर दी है, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक है.

UP Power Crisis: यूपी में बिजली संकट से लोग परेशान, जरूरत से 30 फीसदी कम मिल रहा है कोयला

UP Power Crisis: यूपी में बिजली संकट से लोग परेशान, जरूरत से 30 फीसदी कम मिल रहा है कोयला

उत्तर प्रदेश में बिजली संकट चल रहा है. इस भीषण गर्मी में इससे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. UP News: उत्तर प्रदेश में बिजली संकट जारी है. ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी अघोषित बिजली कटौती हो रही है. प्रदेश में सार्वजनिक व निजी क्षेत्र की 3615 मेगावाट क्षमता की इकाइयों के बंद होने से संकट और गहरा गया है. बिजली का उत्पादन कम होने के पीछे एक बड़ी वजह कोयले की कमी बताई जा रही है. वहीं राज्य विद्युत परिषद का कहना है कि कोयले की कमी ऐसे ही नहीं हुई बल्कि किसी बड़ी साजिश का हिस्सा लगती है. यूपी राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने बताया कि प्रदेश के बिजली घरों के लिए रोजाना 87900 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है. जबकि आपूर्ति 61 हजार मैट्रिक टन की ही हो पा रही है. मतलब साफ है कि जितने कोयले की जरूरत है उससे लगभग 30 फीसद कम कोयला उपलब्ध है. उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि कुछ समय पहले लोकसभा में कोयला मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि कोयले की कोई कमी नहीं. हालांकि इसके कुछ समय बाद ही केंद्र ने राज्यों को सलाह दी कि वह अपनी जरूरत का 10 फीसद कोयला विदेश से खरीदें. अवधेश वर्मा ने बताया कि इसके बाद यूपी में भी इसे लेकर प्रक्रिया शुरू हुई. लेकिन उपभोक्ता परिषद ने जब आकलन किया तो सामने आया कि अगर विदेशी कोयला खरीदा जाता है तो करीब 3000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आएगा. ऐसे में बिजली उपभोक्ताओं को 70 पैसे से एक रुपए तक प्रति यूनिट अधिक खर्च करना होगा. कोयला मंत्री के लोकसभा में दिए बयान को देखें तो कोयले की कमी नहीं. अगर कमी नहीं है तो फिर विदेशी कोयला खरीदने की बात क्यों कही गई. इसे देखते हुए उपभोक्ता परिषद ने राज्य विद्युत नियामक आयोग में याचिका दाखिल कर विदेशी कोयला न खरीदने की मांग उठाई. यह मामला शासन के भी संज्ञान में आ चुका है जिसके चलते फिलहाल विदेशी कोयले को लेकर टेंडर प्रक्रिया नहीं हुई. अवधेश वर्मा का कहना है कहीं बिजली संकट पैदा कर इसकी जरूरत महसूस कराने की कोशिश तो नहीं की विदेशी कोयला खरीदना पड़ेगा? कही ये विदेशी कोयले का काम करने वाली फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए सुनियोजित साजिश तो नहीं?

ललितपुर: तेज रफ्तार गाड़ी चलाना पड़ा भारी, बाइक सवारों को बचाने के चक्कर में बस का ऐक्सिडेंट, चार की

ललितपुर: तेज रफ्तार गाड़ी चलाना पड़ा भारी, बाइक सवारों को बचाने के चक्कर में बस का ऐक्सिडेंट, चार की

उत्तर प्रदेश के ललितपुर थाना सदर कोतवाली सीयूजी नंबर 3826 सवारियों से भरी बस अनियंत्रित होकर पल गई जिससे चार लोगों की मृत्यु और दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए है। इस हादसे पर सीएम योगी ने शोक व्यक्त किया है साथ ही मृतकों को दो-2 लाख रुपए देने के निर्देश दिए है। घटना स्थल पर बचाव कार्य मैं जुटे ग्राम वासी व राहगीर छह लोगों की मौके पर मौत हो गई उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में मंगलवार शाम को दर्दनाक हादसा हुआ है। यह हादसा प्राइवेट बस के पलटने से हुआ है। शहर कोतवाली क्षेत्र के महरौनी रोड पर बाइक को बचाने के दौरान अनियंत्रित हुई प्राइवेट बस सीयूजी नंबर -3826 पुलिया की दीवार तोड़कर खाई में गिर गई। इस हादसे में बाइक सवार सहित छह लोगों की मौके पर मौत हो गई जबकि दो दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। यह हादसा मसौरा मिर्चवारा के बीच पड़ोरिया बाग के पास हुआ। बस काफी तेज रफ्तार में थी घटना स्थल पर पड़ी बस इस सड़क दुर्घटना के दौरान बस काफी तेज रफ्तार में थी। बाइक सवारों को बचाने के चक्कर में संतुलन बिगड़ने से बस पलट गई और जिससे दर्दनाक हादसा हो गया। बस यात्रियों से भरी हुई थी। बस पलटने के बाद सड़क किनारे एक पुलिया को तोड़कर खाई में जा गिरी। बस के पलटने से बैठे यात्रियों की चीख-पुकार मच गई। स्थानीय लोगों ने हादसे में घायल हुए लोगों को बस से निकालना शुरू कर दिया और सड़क दुर्घटना की जानकारी कोतवाली पुलिस को देकर तत्काल बस में फंसे लोगों को निकालना शुरू कर दिया। कुछ देर में पहुंची कोतवाली पुलिस ने एंबुलेंस बुलाकर घायलों को अस्पताल भेजना शुरू किया। जिला अस्पताल में बड़ी संख्या में पहुंचे घायलों से अफरातफरी मच गई। दो दर्जन से अधिक लोग है घायल ललितपुर से मड़ावरा जा रही निजी बस देर शाम करीब 6.10 बजे शहर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम मसौरा-मिर्चवारा के बीच पड़ोरिया बाग के निकट पहुंची तभी बस के आगे जा रही बाइक सवार को बचाने में बस अनियंत्रित हो गई। जिलाधिकारी आलोक सिंह के निर्देश पर सीएमओ डॉ. मुकेश चंद्र, सीएमएस डॉ. राजेंद्र प्रसाद सहित डॉक्टरों की टीम अस्पताल पहुंची और घायलों का उपचार शुरू कर दिया। डॉक्टरों ने घायल हुए लोगों में रजनीश(25) पुत्र देवी निवासी गांव दामिनी, सुखवती (62)पत्नी आनंद कुमार निवासी महरौनी, रघुवर(25) पुत्र रामशरन निवासी पिपरिया बंशा जाखलौन और लखनलाल (55)पुत्र जूने निवासी बजर्रा खितमास को उपचार के दौरान मृत घोषित कर दिया। जबकि 27 गंभीर रूप से घायलों को जिला अस्पताल में भर्ती कर उपचार किया जा रहा है। उधर, घटनास्थल पर क्रेन बुलाकर बस को निकलवाया गया। मृतकों को मिलेंगे 2 लाख रुपए
इस दर्दनाक हादसे पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने दुख जताया है। सीएम ने ट्वीट कर ललितपुर में बस पलटने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में लोगों की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को राहत व बचाव कार्य तेजी से संचालित कर दुर्घटना में घायल लोगों के उपचार की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही बस दुर्घटना में सीएम योगी ने सभी मृतकों के परिजनों को दो- दो लाख की आर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए है।

ललितपुर -: मसौरा के पड़ोरिया बाग़ के पास पलटी बस, करीब 4 की मौत करीब 34 घायल

ललितपुर -: मसौरा के पड़ोरिया बाग़ के पास पलटी बस, करीब 4 की मौत करीब 34 घायल

ललितपुर में हुए बस हादसे पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने शोक व्यक्त किया है। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को राहत एवं बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। कोतवाली क्षेत्र के महरौनी रोड पर मंगलवार देर शाम दर्दनाक सड़क हादसा हुआ। ललितपुर: जिले में बीते दिन हुए भीषण सड़क हादसे में मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता का ऐलान सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया है. बता दें कि मंगलवार को मसोरा कला के पास ललितपुर से धोरी सागर जाने वाली बस पलट गई थी. इस दुर्घटना में 4 लोगों की मौत हो गई और 37 लोग घायल हो गए. ललितपुर में हुए बस हादसे पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने शोक व्यक्त किया है। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों को राहत एवं बचाव कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। कोतवाली क्षेत्र के महरौनी रोड पर मंगलवार देर शाम दर्दनाक सड़क हादसा हुआ। मड़ावरा की ओर जा रही निजी बस कोतवाली सदर क्षेत्र के पडोरिया बाग इलाके में बाइक सवार को बचाने के दौरान पुलिया तोड़कर खाई में जा गिरी। इस घटना में बस में सवार चार लोगों की मौत की सूचना है। जबकि 25 से अधिक यात्री घायल बताए जा रहे हैं। हादसे पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने जताया दुख.. इस हादसे पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने दुख जताया है। सीएम ने ट्वीट कर ललितपुर में बस पलटने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में लोगों की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया है। सीएम योगी ने अधिकारियों को राहत व बचाव कार्य तेजी से संचालित कर दुर्घटना में घायल लोगों के उपचार की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। पुलिस ने बताया कि घायलों को एंबुलेंस से जिला अस्पताल लाया जा रहा है। जानकारी मिलते ही अधिकारी घटनास्थल रवाना हो गए। जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन द्वारा ग्रामीणों की मदद से बस में सवार सभी घायल को एंबुलेंस से जिला अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है जहां उनका उपचार चल रहा है। फिलहाल 2 लोगों की हालत गम्भीर बताई जा रही है जिन्हें झांसी मेडिकल कॉलेज किया जा रहा है।

Mohan Bhagwat Biography – सरकारी नौकरी से सरसंघचालक तक, जानिए मोहन भागवत कैसे बने RSS प्रमुख

Mohan Bhagwat Biography – सरकारी नौकरी से सरसंघचालक तक, जानिए मोहन भागवत कैसे बने RSS प्रमुख

RSS के वर्तमान प्रमुख या सरसंघचालक मोहन भागवत के बारे में. महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्में मोहन भागवत वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े संगठन कहे जाने वाले आरएसएस के प्रमुख है. Mohan Bhagwat Biography – हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) यानि RSS के वर्तमान प्रमुख या सरसंघचालक मोहन भागवत के बारे में. महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्में मोहन भागवत वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े संगठन कहे जाने वाले आरएसएस के प्रमुख है. आरएसएस प्रमुख होने के नाते मोहन भागवत आज देश के सबसे ताकतवर लोगों में से एक है. मोहन भागवत अक्सर अपने बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में रहते हैं. मोहन भागवत के बारे में हम सभी जानते हैं, लेकिन कम ही लोग हैं जो मोहन भागवत के परिवार या उनके सफ़र के बारे में जानते होंगे. आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि मोहन भागवत कौन है?, मोहन भागवत के परिवार में कौन-कौन है?, मोहन भागवत कैसे RSS के सरसंघचालक बने? मोहन भागवत जीवनी (Mohan Bhagwat Biography) मोहन भागवत का जन्म 11 सितम्बर 1950 को महाराष्ट्र के चन्द्रपुर नामक एक छोटे से नगर में हुआ था. मोहन भागवत का पूरा नाम मोहनराव मधुकरराव भागवत है. मोहन भागवत के पिता का नाम मधुकरराव भागवत है. मोहन भागवत की माता का नाम मालतीबाई है. मधुकरराव भागवत और मालतीबाई के तीन बेटे और एक बेटी हुई, जिनमें मोहन भागवत सबसे बड़े हैं. मोहन भागवत शिक्षा (Mohan Bhagwat Education) मोहन भागवत ने चन्द्रपुर के लोकमान्य तिलक विद्यालय से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद चन्द्रपुर के जनता कॉलेज से बीएससी की शिक्षा हासिल की. मोहन भागवत ने पंजाबराव कृषि विद्यापीठ, अकोला से पशु चिकित्सा और पशुपालन में स्नातक की डिग्री हासिल की. तीन पीढ़ी पुराना है संघ से नाता मोहन भागवत का आरएसएस से रिश्ता तीन पीढ़ी पुराना है. मोहन भागवत के दादा नारायण भागवत और मोहन भागवत के पिता मधुकर भागवत का RSS से जुड़ाव रहा है. मधुकर भागवत ने गुजरात में कुछ साल आरएसएस के प्रचारक के तौर पर भी काम किया. कहा जाता है कि मधुकर भागवत ने ही लालकृष्ण आडवाणी का आरएसएस से परिचय करवाया था. सरकारी ऑफिसर बने मोहन भागवत पढ़ाई पूरी करने के बाद मोहन भागवत ने सरकारी नौकरी करना शुरू की. मोहन भागवत एनिमल हसबेंडरी विभाग में बतौर वेटनरी ऑफिसर काम करने लगे. शुरुआत में मोहन भागवत की पोस्टिंग चंद्रपुर में ही थी, लेकिन बाद में उनका ट्रांसफर 90 किलोमीटर दूर चमोर्शी कर दिया गया. आपातकाल ने बदली जिंदगी इस बीच साल 1974 में जब मोहन भागवत पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अकोला गए तब कुछ दिनों बाद साल 1975 में देश में आपातकाल लगा दिया गया. ऐसे में मोहन भागवत ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी और संघ के प्रचारक बन गए. आपातकाल के दौरान मोहन भागवत के माता-पिता को जेल में डाल दिया गया. ऐसे में आपातकाल के दौरान मोहन भागवत अज्ञातवास में रहे. संघ के सरसंघचालक बने साल 1991 में मोहन भागवत आरएसएस के शारीरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम के अखिल भारतीय प्रमुख बने. साल 1999 तक मोहन भागवत इस पद पर रहे. इसी वर्ष मोहन भागवत को पूरे देश के संघ प्रचारकों का प्रमुख बनाया गया. साल 2000 में तत्कालीन संघ प्रमुख राजेन्द्र सिंह और तत्कालीन सरकार्यवाह एच. वी. शेषाद्री ने स्वास्थ्य कारणों से अपना पद छोड़ दिया, जिसके बाद एस सुदर्शन को संघ का नया प्रमुख और मोहन भागवत को सरकार्यवाह बनाया गया. इसके बाद 21 मार्च 2009 को एस सुदर्शन के पद छोड़ने के बाद मोहन भागवत को संघ का सरसंघचालक बनाया गया. मोहन भागवत का परिवार (mohan bhagwat family) जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि मोहन भागवत के दो भाई और एक बहन है. इसके अलावा लोग अगर इन्टरनेट पर सर्च करते हैं कि मोहन भागवत की पत्नी का नाम क्या है? और मोहन भागवत की बेटी का नाम (mohan bhagwat daughter name) क्या है? मोहन भागवत ने शादी नहीं की है. वह कुंवारे है.

ललितपुर जिले का इतिहास | कैसे बना ललितपुर जिला | किसने बनाया ललितपुर | कितने बड़ा हैं ललितपुर

ललितपुर जिले का इतिहास | कैसे बना ललितपुर जिला | किसने बनाया ललितपुर | कितने बड़ा हैं ललितपुर

ललितपुर जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जिलों में से एक है । ललितपुर जिला झाँसी संभाग का एक हिस्सा है । ललितपुर मुख्य शहर और प्रशासनिक मुख्यालय है। जिले का क्षेत्रफल 5,039 वर्ग किमी है। ललितपुर जिला झांसी डिवीजन का एक हिस्सा है और इसे वर्ष 1974 में एक जिले के रूप में बनाया गया था। यह झांसी जिले से उत्तर-पूर्व में एक संकीर्ण गलियारे से जुड़ा हुआ है, और अन्यथा लगभग मध्य प्रदेश राज्य से घिरा हुआ है, जो एक प्रमुख उदाहरण है । ललितपुर जिला 24°11' और 25°14' (उत्तर) और देशांतर 78°10' और 79°0' (पूर्व) के बीच स्थित है और उत्तर में जिला झांसी, मध्य प्रदेश राज्य के जिले सागर और टीकमगढ़ से घिरा है। मध्य प्रदेश के पूर्व और अशोक नगर को पश्चिम में बेतवा नदी से अलग किया गया। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 1,221,592 थी। इस जिले में कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थान हैं जैसे देवगढ़, सीरोंजी, पावागिरी , देवमाता, पाली में नीलकंठेश्वर , बंट (पाली) के पास चव्हाण। मचकुंड की गुफा। ललितपुर शहर में कई हिंदू और जैन मंदिरों जैसे कई स्थान हैं। रघुनाथजी (बड़ा मंदिर) (काली बौआ जी मंदिर), शिवालय, बूढे बब्बा (हनुमानजी), हिंदुओं के लिए तुवन मंदिर और जैनियों के लिए बड़ा मंदिर, अटा मंदिर और क्षेत्रपालजी प्रसिद्ध मंदिर हैं। भूगोल जिला बुन्देलखण्ड के पहाड़ी देश का एक हिस्सा बनाता है , जो दक्षिण में विंध्य रेंज बहरी इलाकों से उत्तर में यमुना की सहायक नदियों तक ढलान करता है। चरम दक्षिण लंबी और संकरी पहाड़ियों की समानांतर पंक्तियों से बना है। बीच की घाटियों के माध्यम से नदियाँ ग्रेनाइट या क्वार्ट्ज के किनारों पर बहती हैं। पहाड़ी क्षेत्र के उत्तर में, ग्रेनाइट की जंजीरें धीरे-धीरे छोटी पहाड़ियों के समूहों में बदल जाती हैं।बेतवा नदी जिले के उत्तरी और पश्चिमी सीमा बनाती है, और इसकी वाटरशेड के भीतर जिले झूठ का सबसे। जमनी नदी , बेतवा की एक सहायक नदी, पूर्वी सीमा बनाती है। धसान नदी जिले के दक्षिणी सीमा बनाती है, और इसकी वाटरशेड के भीतर जिले झूठ के दक्षिणपूर्वी हिस्से। जिले में अब एक पृथकतावादी आंदोलन दक्षिणी उत्तर प्रदेश और उत्तरी मध्य प्रदेश में शुरु की एक अलग राज्य बनाने के लिए सामना कर रहा है बुन्देलखण्ड, के रूप में इस क्षेत्र परंपरागत रूप से स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है। जलवायु जिले की जलवायु उपोष्णकटिबंधीय हैं, जो बहुत गर्म शुष्क गर्मी और एक ठंडी सर्दी की विशेषता है। बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्य जिलों की तरह, इस जिले में भी एक वर्ष में चार अलग-अलग मौसम होते हैं। ग्रीष्म ऋतु मार्च से मध्य जून तक होती है, दक्षिण पश्चिम मानसून मध्य जून से सितंबर तक होता है। अक्टूबर और नवंबर के महीनों के बीच मानसून के बाद का संक्रमण मानसून के बाद का मौसम होता है और सर्दियों का मौसम दिसंबर से फरवरी तक रहता है। इतिहास वर्तमान ललितपुर जिले का क्षेत्र चंदेरी राज्य का हिस्सा था , जिसकी स्थापना 17 वीं शताब्दी में एक बुंदेला राजपूत ने की थी, जो ओरछा के रूद्र प्रताप सिंह के वंशज थे । चंदेरी, बुंदेलखंड के अधिकांश हिस्सों के साथ, 18 वीं शताब्दी में मराठा आधिपत्य के अधीन आ गया । पड़ोसी ग्वालियर के दौलत राव सिंधिया ने 1812 में चंदेरी राज्य पर कब्जा कर लिया। 1844 में, चंदेरी का पूर्व राज्य अंग्रेजों को सौंप दिया गया था , और ललितपुर शहर के साथ जिला मुख्यालय के रूप में ब्रिटिश भारत का चंदेरी जिला बन गया । अंग्रेजों ने 1857 के भारतीय विद्रोह में जिले को खो दिया , और इसे 1858 के अंत तक फिर से नहीं जीता गया था। 1861 में, चंदेरी सहित बेतवा के पश्चिम जिले के हिस्से को ग्वालियर राज्य में वापस कर दिया गया था, और शेष का नाम बदलकर ललितपुर जिला कर दिया गया था। . [१] यह १८९१ से १९७४ तक झांसी जिले का हिस्सा बन गया । १९७४ में, जिले को झांसी जिले से अलग किया गया था। ब्रिटिश काल से ललितपुर क्षेत्र में कुछ शाही परिवार हैं। महाराजा चौबे भीम सिंह ललितपुर महाराजा चौबे भीम सिंह, ललितपुर के चौबे परिवार का पहला और सबसे उल्लेखनीय नाम था, उन्होंने अपनी योग्यता, प्रशासनिक कौशल और वीरता के कारण प्रगति की, फिर तत्कालीन चंदेरी राज्य के प्रमुख और प्रधान मंत्री बने। , भीम सिंह का जन्म 1685 में हुआ था और 1730 में उनकी मृत्यु हो गई थी। ललितपुर क्षेत्र उस समय चंदेरी का हिस्सा था और चौबे भीम सिंह के वंशजों को यहां जागीरदार नियुक्त किया गया था। महाराजा भीम सिंह का परिवार ललितपुर का सबसे प्रसिद्ध शाही परिवार माना जाता है। ललितपुर के चौबेयाना क्षेत्र में आज भी महाराजा चौबे भीम सिंह के वंशजों के महल में मकान हैं, यह किला 400 साल पुराना बताया जाता है। पुरानी बखर, बड़वार हाउस, ललितपुर हाउस और अन्य नाम यहां पुराने किला हाउस के रूप में स्थित हैं। चौबे भीम सिंह के वंशजों ने तेज सिंह सर्व सुख नमक फर्म नाम की एक कंपनी बनाई। इस कंपनी ने आधिकारिक तौर पर कोटा मिर्जापुर व्यापार मार्ग पर अपने अधिकार हासिल कर लिए थे। कहा जाता है कि एक समय इस शाही परिवार के पास 30,000 बैलगाड़ियां थीं। ब्रिटिश काल में चौबे परिवार अपने शाही जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि जब पड़ोसी राज्यों में धन की कमी होती थी तो चौबे परिवार उन्हें धन देता था। बाद में, तेज सिंह ही सर्व सुखा के वंशजों के बीच विवाद के कारण, इस फर्म को विभाजन का सामना करना पड़ा और फिर दो अलग-अलग फर्मों का गठन किया। 1902 में, चौबे भीम सिंह के वंशज राम भरोसे चौबे और कामता प्रसाद चौबे को ब्रिटिश सरकार द्वारा मानद मजिस्ट्रेट के पद से सम्मानित किया गया था। डॉ. हरि राम चौबे जो एक स्वतंत्रता सेनानी थे, उन्हें आजादी से पहले और बाद की अवधि में 11 बार कैद किया गया था, 1933 में उन्हें पहली बार अजमेर में नजरबंद किया गया था। मानद मजिस्ट्रेट रामभरोसे चौबे के पुत्र। परशुराम चौबे सरकारी वकील थे और उन्होंने ललितपुर में उपभोक्ता सहकारी समिति की नींव रखी। वे इसके पहले अध्यक्ष भी थे। वह जनसंघ अब भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से सक्रिय राजनीति में मरते दम तक सक्रिय रहे। ललितपुर का सबसे पुराना नेहरू कॉलेज भी इसी परिवार की देन है। ललितपुर का सबसे पुराना स्कूल एसडीएस कॉन्वेंट भी इसी परिवार द्वारा दी गई जमीन पर बना है। रमेश चंद्र चौबे एक जिला न्यायाधीश हैं और समाजवादी आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हरिहर नारायण चौबे भी इस परिवार का एक बहुत मजबूत स्तंभ हैं। बुंदेलखंड की राजनीति में चौबे परिवार का खास स्थान रहा है। आज की भारतीय जनता पार्टी, तत्कालीन जनसंघ के सभी बड़े नेताओं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अशोक सिंघल राजमाता सिंधिया ने इसी परिवार से बुंदेलखंड में जनसंघ की नींव रखी थी। महाराजा रावसाहब नरहाटी महाराजा रावसाहब पाली महाराजा इंद्रपाल सिंह बुंदेला जखलौं महाराजा मर्दन सिंह तलबेहाटी . अर्थव्यवस्था 2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने ललितपुर को देश के 250 सबसे पिछड़े जिलों (कुल 640 में से ) में से एक नाम दिया। [२] यह उत्तर प्रदेश के ३४ जिलों में से एक है जो वर्तमान में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि कार्यक्रम (बीआरजीएफ) से धन प्राप्त कर रहा है। [2] प्रभागों ललितपुर पांच तहसीलों , ललितपुर, महरौनी, तलबेहट, मदवाड़ा और पाली में विभाजित है ; चार नगर, ललितपुर, महरोनी, तलबेहट, और पाली; और 754 गांव। जिला मजिस्ट्रेट श्री अलोक सिंह आईएएस और पुलिस अधीक्षक श्री निखिल पाठक आईपीएस हैं, इस जिले में दो उत्तर प्रदेश विधानसभा क्षेत्र हैं: ललितपुर और मेहरोनी। ये दोनों झांसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं । वर्तमान में ललितपुर निर्वाचन क्षेत्र से राम रतन कुशवाहा विधायक हैं और महरौनी निर्वाचन क्षेत्र से मन्नू कोरी विधायक हैं। वर्तमान में नगर पालिका परिषद ललितपुर की अध्यक्ष श्रीमती रजनी साहू हैं महरौनी नगर पंचायत की अध्यक्ष श्रीमती कृष्णा अमर सिंह और तालबेहट नगर पंचायत की अध्यक्ष श्रीमती मुक्ता सोनी हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार Lalitpur जिले, उत्तर प्रदेश एक है जनसंख्या 1,221,592 की, [4] मोटे तौर पर राष्ट्र के बराबर बहरीन [5] या, अमेरिकी राज्य न्यू हैम्पशायर । [६] यह इसे भारत में ३९१वां स्थान देता है (कुल ६४० में से )। [४] जिले का जनसंख्या घनत्व २४२ निवासी प्रति वर्ग किलोमीटर (६३०/वर्ग मील) है। [४] २००१-२०११ के दशक में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर २४.५७% थी। [4] Lalitpur एक है लिंग अनुपात 905 की महिलाओं हर 1000 पुरुषों के लिए, [4] और एक साक्षरता दर 64.95% की। [४] भारत की 2011 की जनगणना के समय , जिले की 99.18% आबादी हिंदी और 0.58% उर्दू अपनी पहली भाषा के रूप में बोलती थी । [7] ट्रांसपोर्ट शहर रेलवे और सड़क परिवहन द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेलवे ललितपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन भारत की मुख्य रेलवे लाइन के अंतर्गत आता है। यह देश के सभी भागों से रेल सेवाओं द्वारा भली-भांति जुड़ा हुआ है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता (हावड़ा), चेन नई, आगरा, जम्मू तवी, बैंगलोर (बेंगलुरु), त्रिवेंद्रम, इंदौर, अहमदाबाद, पुणे, जम्मू, लखनऊ, भोपाल, जबलपुर, कानपुर और अन्य प्रमुख शहरों के लिए दैनिक ट्रेनें उपलब्ध हैं। ललितपुर स्टेशन अब एक जंक्शन है, खजुराहो, सिंगरौली, सतना और टीकमगढ़ के लिए सीधे ट्रेनें। सड़क परिवहन कश्मीर से कन्याकुमारी NH-44 तक भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग ललितपुर से होकर गुजरता है, जो भारत के प्रमुख शहरों को जोड़ता है। प्रमुख शहरों - कानपुर, इंदौर, भोपाल, सागर, पन्ना के लिए बस सुविधा। नोट: यूपी का ललितपुर जिला यूरेनियम जमा के लिए भी जाना जाता है।

कहानी ऐसे गैंगस्टर की जो 20 साल की उम्र में ही बन गया था डॉन, जुर्म के लिए निकालता था विज्ञापन

कहानी ऐसे गैंगस्टर की जो 20 साल की उम्र में ही बन गया था डॉन, जुर्म के लिए निकालता था विज्ञापन

दुर्लभ कश्यप मात्र 20 साल की उम्र में अपराध की दुनिया का बड़ा चेहरा बन गया था। इन सालों में उसके कई दुश्मन बने जिन्होंने उसे मौत के मुंह में धकेला। आज दुर्लभ भले ही जीवित न हो लेकिन उसके नाम पर उज्जैन में कई गैंग सक्रिय हैं। आज बात मध्य प्रदेश के उज्जैन के गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप की जिसने मात्र 20 साल की उम्र में ही अपना खौफ लोगों के मन में बैठा दिया था। जिस उम्र में युवक अपने भविष्य की चिंताओं में उलझे रहते हैं, उतनी उम्र में दुर्लभ के ऊपर आधा दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमें दर्ज थे। हालांकि, अब दुर्लभ कश्यप जैसा गैंगस्टर इस दुनिया में नहीं है पर उसके नाम पर अब भी कई गैंग सक्रिय हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन में साल 2000 में जन्मा दुर्लभ कश्यप एक कारोबारी पिता और शिक्षिका मां की संतान था। दुर्लभ के पिता पहले मुंबई में व्यापार करते थे लेकिन बाद में वह इंदौर आ गए। जब दुर्लभ थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने काम भी बड़े अजीब तरीके से शुरू किए। जैसे कि उसने अपनी फेसबुक की प्रोफाइल पर लिख रखा था कि- “किसी भी तरह के विवाद निपटारे के लिए संपर्क करें”। सोशल मीडिया पर खासा सक्रिय रहने वाला दुर्लभ कश्यप अपना व गैंग के प्रचार के लिए फेसबुक को सहारा बनाता था। वह यहीं पर लोगों को धमकी देता और गैंग का बखान करता। दुर्लभ की उम्र कम ही थी लेकिन काम ऐसे ही आड़े-टेढ़े थे। फेसबुक के जरिए ही रंगदारी और सुपारी लेना उसका शगल बन गया था। इसके अलावा उसकी गैंग में अधिकतर नाबालिग लड़के ही शामिल थे। दुर्लभ कश्यप सोशल मीडिया के जरिए धमकी देने के अलावा अपनी ड्रेसिंग के कारण भी चर्चा में रहता था। आंखों में काला सूरमा, माथे पर लंबा तिलक और कंधे पर गमछा उसकी और गैंग की पहचान बन चुकी थी। अक्सर हथियारों व गैंग के साथ सोशल मीडिया पर फोटो डालने के लिए मशहूर दुर्लभ की गैंग में अधिकतर उसी से प्रभावित करीब 100 किशोर थे। कारनामों के चलते लोग उसे उज्जैन का डॉन भी कहने लगे थे। दुर्लभ कश्यप अपनी गैंग के सहारे इलाके में रंगदारी हफ्ता वसूली और लूट जैसी वारदातों को अंजाम देता था। 18 साल की उम्र में ही दुर्लभ और उसकी गैंग खौफ का दूसरा नाम बन चुकी थी और उस पर करीब 9 मुकदमें दर्ज थे। दुर्लभ कश्यप गैंग के सभी बदमाश एक ही तरह की ड्रेस पहनते थे, जैसा दुर्लभ का पहनावा था। इसके अलावा दुर्लभ ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर खुद को कुख्यात बदमाश, हत्यारा और नामी अपराधी लिख रखा था। साथ ही विज्ञापन की शक्ल में अक्सर लिखता था कि किसी भी तरह के विवाद निपटारे के लिए संपर्क करें। 16 साल की उम्र में जुर्म की दुनिया में उतरा दुर्लभ दो सालों में आतंक का पर्याय बन गया। हालांकि, साल 2018 में पुलिस प्रशासन ने कई प्रयासों के बाद दुर्लभ व उसकी गैंग का पर्दाफाश कर दिया था। पुलिस कार्रवाई के बाद दुर्लभ कश्यप को जेल भेज दिया गया लेकिन उसके नाम पर गैंग चलता रहा। साल 2020 में कोरोना के दौर में सभी कैदियों की तरह उसे भी रिहा किया गया। 6 सितंबर 2020 में वह रात को घर से बाहर निकला तो रास्ते में चाय की दुकान पर दूसरी गैंग से गैंगवार हो गई। जिसमें शाहनवाज और शादाब नाम के दो बदमाशों ने दुर्लभ को चाकुओं से गोदकर मौत के घाट उतार दिया। उस पर 30 से ज्यादा बार चाकू से हमला किया गया था।

पन्ना धाय के बलिदान की कहानी जिन्होंने महाराणा प्रताप के पिता की बचाई थी जान

पन्ना धाय के बलिदान की कहानी जिन्होंने महाराणा प्रताप के पिता की बचाई थी जान

चित्तौड़गढ़ के इतिहास में जहाँ पद्मिनी के जौहर की अमरगाथाएं, मीरा के भक्तिपूर्ण गीत गूंजते हैं वहीं पन्नाधाय जैसी मामूली स्त्री की स्वामीभक्ति की कहानी भी अपना अलग स्थान रखती है। बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला आन्तरिक विरोध व षड्यंत्रों में जल रहा था। मेवाड़ का भावी राणा उदय सिंह किशोर हो रहा था। तभी उदयसिंह के पिता के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यन्त्र रच कर उदयसिंह के पिता की हत्या महल में ही करवा दी तथा उदयसिंह को मारने का अवसर ढूंढने लगा। उदयसिंह की माता को संशय हुआ तथा उन्होंने उदय सिंह को अपनी खास दासी व उदय सिंह की धाय पन्ना को सौंप कर कहा कि, “पन्ना अब यह राजमहल व चित्तौड़ का किला इस लायक नहीं रहा कि मेरे पुत्र तथा मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा कर सके‚ तू इसे अपने साथ ले जा‚ और किसी तरह कुम्भलगढ़ भिजवा दे।” पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की। पन्ना चित्तौड़ के कुम्भा महल में रहती थी। चित्तौड़ का शासक, दासी का पुत्र बनवीर बनना चाहता था। उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई। पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया। पुत्र की मृत्यु के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक सप्ताह शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनबीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था, उन्होंने पन्ना को आश्रय नहीं दिया। पन्ना जगह-जगह राजद्रोहियों से बचती, कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को ज़ाहिर करती भटकती रही। कुम्भलगढ़ में उसे यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है शरण मिल गयी। उदयसिंह क़िलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ। तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया। उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए। आईये उस महान वीरता से परिपूर्ण पन्ना की कहानी को इस कविता के माध्यम से समझते है ।। चल पड़ा दुष्ट बनवीर क्रूर, जैसे कलयुग का कंस चला राणा सांगा के, कुम्भा के, कुल को करने निर्वश चला उस ओर महल में पन्ना के कानों में ऐसी भनक पड़ी वह भीत मृगी सी सिहर उठी, क्या करे नहीं कुछ समझ पड़ी तत्क्षण मन में संकल्प उठा, बिजली चमकी काले घन पर स्वामी के हित में बलि दूंगी, अपने प्राणों से भी बढ़ कर धन्ना नाई की कुंडी में, झटपट राणा को सुला दिया ऊपर झूठे पत्तल रख कर, यों छिपा महल से पार किया फिर अपने नन्हें­मुन्ने को, झट गुदड़ी में से उठा लिया राजसी वसन­भूषण पहना, फौरन पलंग पर लिटा दिया इतने में ही सुन पड़ी गरज, है उदय कहां, युवराज कहां शोणित प्यासी तलवार लिये, देखा कातिल था खड़ा वहां पन्ना सहमी, दिल झिझक उठा, फिर मन को कर पत्थर कठोर सोया प्राणों­का­प्राण जहां, दिखला दी उंगली उसी ओर छिन में बिजली­सी कड़क उठी, जालिम की ऊंची खड्ग उठी मां­मां मां­मां की चीख उठी, नन्हीं सी काया तड़प उठी शोणित से सनी सिसक निकली, लोहू पी नागन शांत हुई इक नन्हा जीवन­दीप बुझा, इक गाथा करुण दुखांत हुई जबसे धरती पर मां जनमी, जब से मां ने बेटे जनमे ऐसी मिसाल कुर्बानी की, देखी न गई जन­जीवन में तू पुण्यमयी, तू धर्ममयी, तू त्याग­तपस्या की देवी धरती के सब हीरे­पन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवी तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गयी तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर, हृदय लुटाना सिखा गयी

'मन की बात' में पीएम मोदी ने लोगों से पूछे सात सवाल, आपको पता हैं इनके जवाब?

'मन की बात' में पीएम मोदी ने लोगों से पूछे सात सवाल, आपको पता हैं इनके जवाब?

पीएम मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' का आज 88वां एपिसोड था। इस बार उन्‍होंने जल संरक्षण से लेकर वैदिक गणित पर बात की। मन की बात · प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 'मन की बात' की। पीएम मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम का यह 88वां एपिसोड है। इसका प्रसारण हर महीने के आखिरी रविवार को सुबह 11 बजे किया जाता है। ऑल इंडिया रेडियो (AIR), दूरदर्शन के अलावा नरेंद्र मोदी ऐप पर भी इसका टेलिकास्‍ट होता है। हिंदी में प्रसारण के ठीक बाद आकाशवाणी 'मन की बात' को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रस्‍तुत करता है। पिछले एपिसोड में पीएम मोदी ने लोगों से त्‍योहार बनाने का आग्रह करते हुए भारत की विविधता को मजबूत करने को कहा था। पिछले 'मन की बात' में पीएम ने माधवपुर मेले को भारत की सांस्कृतिक विविधता और जीवंतता के अनूठे उत्सव के रूप में विस्तार से बताया था। मन की बात करते नरेन्द्र मोदी मन की बात' की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'पीएम म्‍यूजियम' का जिक्र किया। उन्‍होंने कहा, 'इस 14 अप्रैल को बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म जयन्ती पर प्रधानमंत्री संग्रहालय का लोकार्पण हुआ है। इसे, देश के नागरिकों के लिए खोल दिया गया है।' इसके बाद उन्‍होंने नमो ऐप पर गुरुग्राम के रहने वाले सार्थक का अनुभव सुनाया जो अभी म्‍यूजियम होकर आए हैं। पीएम मोदी ने लोगों से कई सवाल पूछे। पहला सवाल है कि 'क्या आप जानते हैं कि देश के किस शहर में एक प्रसिद्ध रेल म्यूजियम है, जहाँ पिछले 45 वषों से लोगो को भारतीय रेल की विरासत देखने का मौका मिल रहा है?' पीएम का दूसरा सवाल: क्या आप जानते हैं कि मुंबई में वो कौन सा म्यूजियम है, जहां हमें बहुत ही रोचक तरीके से करेंसी का इवॉल्‍यूशन देखने को मिलता है? यहां ईसा पूर्व छठी शताब्दी के सिक्के मौजूद हैं तो दूसरी तरफ ई-मनी भी मौजूद है। पीएम का तीसरा सवाल ‘विरासत-ए-खालसा’ इस म्यूजियम से जुड़ा है। क्या आप जानते हैं, ये म्यूजियम, पंजाब के किस शहर में मौजूद है? पीएम का चौथा सवाल: पतंगबाजी में तो आप सबको बहुत आनंद आता ही होगा, अगला सवाल इसी से जुड़ा है। देश का एकमात्र काइट म्‍यूजियम कहां है? पीएम का 5वां सवाल: बचपन में डाक टिकटों के संग्रह का शौक किसे नहीं होता! लेकिन, क्या आपको पता है कि भारत में डाक टिकट से जुड़ा नेशनल म्यूजियम कहां है? पीएम का छठा सवाल: गुलशन महल नाम की इमारत में कौन सा म्यूजियम है? आपके लिए क्‍लू ये है कि इस म्यूजियम में आप फिल्म के डायरेक्टर भी बन सकते हैं, कैमरा, एडिटिंग की बारीकियों को भी देख सकते हैं। पीएम का सातवां सवाल: क्या आप ऐसे किसी म्यूजियम के बारे में जानते हैं जो भारत की टेक्‍सटाइल से जुड़ी विरासत को सेलिब्रेट करता है? पीएम मोदी ने कहा कि 'अब ऐसा नहीं है कि UPI का प्रसार केवल दिल्ली जैसे बड़े शहरों तक ही सीमित है! अब तो छोटे-छोटे शहरों में और ज्यादातर गांवों में भी लोग UPI से ही लेन-देन कर रहे हैं! डिजिटल इकॉनमी से देश में एक कल्‍चर भी पैदा हो रहा है!' पीएम मोदी ने कहा, 'देश आजकल लगातार संसाधनों और इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर को दिव्यांगों के लिए सुलभ बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। देश में ऐसे कई स्‍टार्ट-अप्‍स और संगठन भी हैं जो इस दिशा में प्रेरणादायी काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है – Voice of specially-abled people. आप भी अगर किसी दिव्यांग साथी को जानते हैं, उनके टैलेंट को जानते हैं, तो डिजिटल टेक्‍नोलॉजी की मदद से उसे दुनिया के सामने ला सकते हैं। जो दिव्यांग साथी हैं, वो भी इस तरह के प्रयासों से जरुर जुड़ें।' पीएम मोदी ने आगे कहा, 'देश के ज़्यादातर हिस्सों में गर्मी बहुत तेजी से बढ़ रही है। बढ़ती हुई ये गर्मी, पानी बचाने की हमारी ज़िम्मेदारी को भी उतना ही बढ़ा देती है। हो सकता है कि आप अभी जहां हों, वहां पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो। लेकिन, आपको उन करोड़ों लोगों को भी हमेशा याद रखना है, जो जल संकट वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनके लिए पानी की एक-एक बूंद अमृत के समान होती है। साथियों, इस समय आजादी के 75वें साल में, आजादी के अमृत महोत्सव में, देश जिन संकल्पों को लेकर आगे बढ़ रहा है, उनमें जल संरक्षण भी एक है। 'मन की बात' में पीएम मोदी ने कहा, 'गणित तो ऐसा विषय है जिसे लेकर हम भारतीयों को सबसे ज्यादा सहज होना चाहिए। आखिर, गणित को लेकर पूरी दुनिया के लिए सबसे ज्यादा शोध और योगदान भारत के लोगों ने ही तो दिया है। शून्य, यानी, जीरो की खोज और उसके महत्व के बारे में आपने खूब सुना भी होगा। अक्सर आप ये भी सुनते होंगे कि अगर जीरो की खोज न होती, तो शायद हम, दुनिया की इतनी वैज्ञानिक प्रगति भी न देख पाते। Calculus से लेकर Computers तक – ये सारे वैज्ञानिक आविष्कार जीरो पर ही तो आधारित हैं।'

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